
ईश्वर! यह शब्द अपने आप में संपूर्ण है। दुनिया की प्रत्येक चीज की संपूर्णता को भी ईश्वर ( god )शब्द फीका कर देता है। तो आप सोचिए कि जब ईश्वर शब्द ही इतना असीम है तो ईश्वर ( god )का क्या स्वरूप होगा? कैसा होगा वह दिखने में? क्या आकार होगी उसकी देखने में और कितना सुंदर होगा वह?
प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन में कई मर्तबा ऐसा सोचता है किंतु किंचित ही कोई ऐसा मनुष्य होगा जो ईश्वर को देख पाया होगा। हालांकि तमाम ग्रंथों इतिहासों में वर्णन मिलता है कि किन-किन लोगों को ईश्वर ( god )के दर्शन प्राप्त हुए पर ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है जिससे कि कोई निर्विवाद रुप से सहमत हो सके।
ईश्वर के अस्तित्व पर उठने वाली प्रत्येक सहमति पर विवाद है और प्रत्येक असहमति पर भी विवाद है। इसका कारण संसार में तरह-तरह की धर्मों की उत्पत्ति और उनके किताबों में भिन्न-भिन्न तरह से ईश्वर को परिभाषित करना है।
आज के युग में जितने भी धर्म है उतने ही ईश्वर है और उतने ही धार्मिक कर्मकांड है। ऐसे में यह प्रश्न उतना ही स्वाभाविक है कि वास्तव में ईश्वर है क्या चीज़ और किस धर्म की परिभाषा ईश्वर ( god )के प्रति सही बैठती है।
खैर धरती के इन्हीं धर्मों में से किसी एक धर्म को अपनाते हुए इंसान एक दिन मर जाता है पर ईश्वर को नहीं पाता। परंतु एक बात तो निर्विवाद सभी ही स्वीकार करते हैं कि ईश्वर है चाहे वह जैसा भी है जहां भी है किंतु है। ऐसी कोई शक्ति जरूर है इस संसार में जिसके द्वारा सबकुछ निर्बाध रुप से संचालित किया जाता रहता है।
हम उसे देख नहीं सकते उसके स्वरूप को जान नहीं सकते फिर भी हम उसे अनुभव कर सकते हैं उसे समझ सकते हैं। जब हम धरती के विस्तार को देखते हैं तो हमें उस शक्ति का आभास होता है। सूरज, चांद सितारा और आकाशगंगा हमें एहसास कराती है कि ऐसी कोई शक्ति है जो सबसे ऊपर है और हम सभी जिससे अनभिज्ञ हैं।
मैंने कभी समंदर नहीं देखा था। एक बार जब चेन्नई गया तो महाबलीपुरम जाने का मौका मिला तभी मुझे समंदर और उसकी लहरों से सामना हुआ। उस समय मैंने स्वयं को कितना तुच्छ महसूस किया मैं कह नहीं सकता । सामने अगाध पानी देखकर आभास हुआ कि ईश्वर( god ) क्या चीज है?किंतु फिर भी मैं यह नहीं जान पाया कि ईश्वर कैसा है। मगर ईश्वर है तो कहीं ना कहीं, जिसे हम लाख जुगत करके भी नहीं समझ पाते हैं।
अच्छा, प्रत्येक मनुष्य ईश्वर( god ) में आस्था रखता है। वह अनायास ही कह देता है कि ईश्वर आसमान में है। लेकिन सोचने की बात यह है कि क्या ईश्वर सचमुच आसमान में है। यह बात अब तक तो नहीं सिद्ध हो सका है आगे जाने क्या होगा यह मैं नहीं जानता?
हां मगर अपने ज्ञान के मुताबिक यह कह सकता हूं कि ब्रह्मांड के हर वो तारों में से हमारी पृथ्वी एक तारा ही तो है जो इस आकाशगंगा में स्थित है। पृथ्वी घूमती है धूरी पर भी और सूर्य के चारों ओर भी। हम तो इसी घूमती हुई पृथ्वी के एक छोर पर विराजमान है। फिर तो पृथ्वी जिधर भी उन्मुख होती है उधर ही हमारे आसमान हैं। तब हम कैसे सिद्ध करें कि ईश्वर आसमान में किधर है?
एक तरफ से देखा जाए तो आसमान पृथ्वी के चारों ओर है जिसे हम आकाशगंगा के नाम से जानते हैं। अगर इस तथ्य पर सरलता से सोचा जाए तो ईश्वर चारों ओर है। कभी-कभी तो मैं ऐसा सोचता हूं कि यह पूरा ब्रह्मांड ही ईश्वर का रूप तो नहीं है। खैर मेरे सोचने से क्या होता है? सब सोचते हैं सब मर जाते हैं किंतु कोई भी ईश्वर को तथ्यों के साथ परिभाषित नहीं कर पाता और शायद ना ही कोई कर पाएगा।
जहां ईश्वर( god ) की परिभाषा मिलेगी वहां सच नहीं मिलेगा और जहां सच मिलेगा वहां परिभाषा का अभाव रहेगा। फिर हम क्यों ना कहें कि ईश्वर परिभाषा साक्ष्य से परे है। उसको केवल अनुभव ही किया जा सकता है।
जीवन के रास्ते में यात्रा करते हुए इस संसार में वैसे तो बहुत से गुरु और महात्मा मिल ही जाते हैं जो आपको ईश्वर से मिलाने का सुपारी ले लेंगे। वह बताएंगे आपको ईश्वर कैसा है? उसका चरित्र कैसा है? रंग रूप कैसा है? कहां रहता है? यहां तक कि क्या खाता है और स्वर्ग नरक आदि आदि क्या है? किंतु ठीक-ठीक यह सिद्ध नहीं हो पाता कि क्या वे सचमुच ईश्वर को जानते हैं? क्या वह सचमुच ईश्वर से मिल चुके हैं?
फिर अगर आप उनकी बातों पर आस्था रखते हैं तो मान सकते हैं। अगर आस्था नहीं रखते तो नकार भी सकते हैं। मैं समझता हूं कि इसमें कोई पाप नहीं है। यह नया युग है। विज्ञान का दौर है। अगर कोई बात तथ्यपरक नहीं है तो उससे असहमति जताई जा सकती है।
अंत में अगर आप मेरी राय जानना चाहेंगे तो भाई मैं तो पूर्णता मानता हूं कि ईश्वर ( god ) है वह एक ऐसी शक्ति है जिसके द्वारा सृष्टि संचालित होती है। किंतु वह कैसा है कहां है किस रूप में है मैं नहीं जानता। पर मेरी आत्मा यह कहती है कि वह न्याय प्रिय है सबसे प्यार करने वाला है रहम दिल है सबका दाता है और वृहद से लेकर सूक्ष्म तक संसार के किसी भी चीज से अनभिज्ञ नहीं है।
मानव होने के नाते हमें मानवता की राह चलना चाहिए सत्कर्म का रास्ता अपनाना चाहिए दिल से उसके प्रति एहसानमंद होना चाहिए। उस से प्रेम करना चाहिए उसकी वंदना करनी चाहिए। बाकी का सब कुछ वह संभाल लेगा। जन्म के बाद भी मरण के बाद भी।