
सरकारी स्कूलों की दशा देख कर तो अपने देश के शिक्षा व्यवस्था के प्रति इतनी शर्मिंदगी होती है जिसे किसी हद में बांधकर व्यक्त नहीं किया जा सकता। कुछ स्कूल भले ही अपवाद हो सकते हैं किंतु लगभग लगभग सारे स्कूल जिस दशा-दिशा में फल फूल रहे हैं उसे देखकर तो ग्लानि होना हर आम नागरिक के लिए स्वभाविक है।
आप गांव के प्राइमरी सरकारी स्कूलों में देख सकते हैं। अगर स्कूल सुबह 9:00 बजे खुलता है तो सारे बच्चे 8:00 बजे उपस्थित हो जाते हैं। किंतु शिक्षक जी का क्या कहें? जब तक गाय भैंस भर पेट खा नहीं लेंगे तब तक गुरुजी घर का डेरा नहीं छोड़ेंगे। सानी पानी खिलाकर और उकड़ाकर ही स्कूल की ओर प्रस्थान करेंगे। अंततः इतना सब करने धरने में 11:00 या 11:3 बज ही जाता है।
गुरु जी के स्कूल पहुंचते ही बच्चे झूम उठते हैं। एकदम जैसे आसमान में जहाज जाते देखकर झूमते हैं। वैसे गुरु जी की महिमा अपरंपार है। काहे ना हो ? भाई गुरूजी के वजह से ही तो भारत का युवा इतना प्रबुद्ध आज के दिन हो पाया है। वरना सौभाग्य कहां इस देश का?
गुरुजी फटा-फट बच्चों की लाइन लगवाते हैं और जो भी बच्चा लाइन टेढ़ा करते पाया जाता है वह गुरु जी के कर कमलों द्वारा एक चमाट का प्रसाद प्राप्त करता है। काफी जद्दोजहद के बाद लाइने सीधी होती है फिर प्रार्थना शुरु होती है और कुछ ही समय में समाप्त भी।
उसके बाद भारत माता की जय घोष के साथ सभी छात्र अपने-अपने कक्षाओं में प्रवेश कर जाते हैं। कक्षा में बच्चों की मत्थाकुट्टी शुरू होती है। पूरा हाल शोरगुल से भर जाता है। जिसने भी होमवर्क पूरी नहीं की होती वह उसी शोरगुल में एकाग्रचित होकर होमवर्क पूरा करता है।
इसी बीच गुरु जी पधारते हैं। पूरा कक्षा सन्नाटे में बदल जाता है। गुरुजी 2 मिनट कुर्सी पर बैठते हैं फिर बच्चों से कहते हैं—” बच्चों को होमवर्क किए हो ना ?” बच्चों के तरफ से” हां “का जवाब मिलता है। जिसका होमवर्क नहीं पूरा होता वह भी वहां के स्वर में लुप्त हो जाता है। मास्टर जी कहते हैं–” बहुत अच्छे ऐसे ही पढ़ो”
तत्पश्चात उन 2 छात्रों को खड़ा करते हैं खासकर अमूमन जो कक्षा के कप्तान होते हैं। गुरुजी के आदेश पर दोनों चिल्ला-चिल्लाकर सभी को क से ज्ञ तक की रट्टा मरवाते हैं। ऐसा ही सभी कक्षाओं में होता है शुरू से लेकर पांचवी तक।
फिर धीरे-धीरे गुरुजी खिसक जाते हैं और वहां पहुंचते हैं जहां कुर्सियों की कतारें हैं। मास्टरनी जी जिसे आजकल बच्चे अंग्रेजी में मिस जी कहते हैं वह कुर्सी पर बैठी सलाई और ऊन के गोले से स्वेटर तैयार कर रही होती है। उन्ही शिक्षकों में कोई अखबार पढ़ रहा होता है, तो कोई गप्पे लगा रहा होता है। गुरुजी भी वही पहुंच जाते हैं गप मंडली में शामिल होने के लिए।
फिर क्या होता है? खूब गप्पे होती है। कोई राजनीति पर बात करता है, कोई फिल्म पर तो कोई समाज पर तो कोई धर्म पर, और ऐसा करते करते कभी कभी तो मारपीट और गाली गलौज भी हो जाती है। तब तक अचानक ही खाने की छुट्टी का समय हो जाता है और किसी तरह झमेला खत्म होता है।
शाम का पीरियड भी ऐसे ही खत्म होता है। अंतर केवल इतना होता है कि बच्चे सुबह वाले पीरियड में क से ज्ञ तक का अक्षर रटते हैं और शाम वाले पीरियड में 1 से 100 तक की गिनती रटते हैं। यह है हमारे देश के सरकारी स्कूलों में शिक्षा की दशा।
आप ही बताएं अगर ऐसे ही शिक्षा व्यवस्था चल मिलेगी तो क्या होगा उन बच्चों के भविष्य का? क्या होगा इस समाज का और इस देश का? क्या आज के शिक्षक अपने दायित्व के प्रति उत्तरदाई हैं? मुझे तो ऐसा बिल्कुल नहीं लगता।
एक तरफ देश को विश्व गुरु बनाने की बात कही जा रही है किंतु क्या आज के शिक्षकों द्वारा रखी गई इस आधारशिला पर ऐसा कर पाना संभव है ? क्या हमारे बच्चों के साथ खिलवाड़ नहीं हो रहा है? अंत में मैं बस इतना कहूंगा कि आज कि हमारी सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था जिस कैंसर से पीड़ित है उसका शैल चिकित्सा अति आवश्यक है।
अगर इस देश को आगे ले जाना है तो यह जरूरी है कि सरकारी स्कूलों के शिक्षक रवैया बदले, आलस छोड़ें और अपने शिक्षक होने के सही दायित्व का निर्वहन करें। क्योंकि वास्तव में शिक्षक ही इस देश के भविष्य का निर्माण कर सकते हैं। इसलिए प्रत्येक शिक्षक को जागना होगा।