राष्ट्रीयता बहुत ही पवित्र शब्द है। किसी भी व्यक्ति के राष्ट्रीयता की पहचान उसके राष्ट्र के नाम से की जाती है। जैसे कि भारत में रहने वाला व्यक्ति की राष्ट्रीयता भारतीय होगी और अमेरिका में रहने वाले व्यक्ति की राष्ट्रीयता अमेरिकी।
राष्ट्रीयता वह पहचान है जो अपने देश को छोड़ने के बाद अन्य देशों में आपके पहचान का प्रतीक होता है। किंतु राष्ट्रवाद इससे ऊपर की उग्र पहचान है। राष्ट्रीयता केवल आपके पहचान को परिभाषित करती है जबकि राष्ट्रवाद अपने राष्ट्र के प्रति प्रेम का एक ऐसा ग्रुप है जहां आदमी राष्ट्र के लिए कुछ भी कर सकता है ।
राष्ट्रवाद की भावना से ओतप्रोत व्यक्ति अपने राष्ट्र के लिए हर वक्त अपना बलिदान देने को तैयार होता है और यदि उसके सामने कोई भी राष्ट्र का अपमान करता है तो वह हरगिज बर्दाश्त नहीं करता। उग्र राष्ट्रवाद का एक और पहलू यह है कि वह राष्ट्रद्रोहियों के प्रति बेहद निर्दई होता है। यानि किसी भी परिस्थिति में वह राष्ट्र के दुश्मनों की गतिविधियों को सहन नहीं करता।
आजादी के पहले भारत में राष्ट्रवाद अपने मजबूत स्वरुप में था। तब अंग्रेजो के खिलाफ आजादी की जंग लड़ी जा रही थी। तब पूरा देश अपने राष्ट्रीयता वह राष्ट्र को लेकर एकजुट था। तब ना ही किसी धर्म जाति संगठन के नाम पर कोई भेदभाव रही थी। सब राष्ट्रीय स्तर पर एक राय थे भले ही आपस में कितना भी मतभेद हो। यही कारण है कि आजादी की लड़ाई देश के सभी धर्मों जातियों के लोगों ने मिलकर लड़ा और आखिरकार अंग्रेजों को खदेड़ बाहर किया।
तब के राष्ट्रवादियों के अगुआ गांधीजी, नेहरू जी, सरदार जी सरीखे लोग माने जाते थे। परंतु ऐसा नहीं है कि उस समय उग्र राष्ट्रवाद नहीं था। देश में उग्रराष्टवादियों की कोई कमी नहीं थी। उग्र राष्ट्रवादियों ने अंग्रेजों को जिस स्तर का नुकसान पहुंचाया उसे आज भी याद किया जाता है। मंगल पांडे, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह जैसे भारत माता के सपूत उग्रराष्ट्रवादियों की श्रेणी में शामिल हैं।
यदि किसी वीरांगना की बात की जाए तो रानी लक्ष्मीबाई का नाम इस लिस्ट में सबसे आगे है। आज भी झांसी की रानी को पूरे भारतवर्ष के लिए जो लड़ाई लड़ी थीं उसके लिए अंतकरण से याद की जाती है और सदा याद की जाती रहेगी। राष्ट्रवादी नरम विचार वाले होते थे और उग्र राष्ट्रवादी कठोर विचार वाले।
विचारों में इतना मतभेद होते हुए भी दोनों एक दूसरे से कभी नहीं टकराएं। दोनों का लक्ष्य एक ही था आजादी। ऐसे में दोनों ने आजादी को पाने के लिए तन मन जीवन तक लगा दिया।
अब रही बात दोनों के रास्ते अलग होने के रास्ते अलग तब हुए जब आजादी मिल गई और जीन्ना के जिद्द के आगे राष्ट्रवादी तबका हार मान गया तथा देश को दो टुकड़ों में विभाजित करने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। तब उग्र राष्ट्रवादियों में आक्रोश फैल गई।
वैसे आक्रोश फैलना गलत नहीं था। जिस राष्ट्र की आजादी के लिए लहू को पानी की तरह बहाया गया उस देश को अपने ही सामने टुकड़ों में विभाजित होते हुए कैसे देखा जाए ? यही बात उग्र राष्ट्रवादियों को नागवार गुजरा। फिर भी गांधीजी, नेहरू जी और सरदार जैसे श्रेष्ठ महापुरुष जैसे नेताओं के सामने उन्हें झुकना पड़ा और देश दो भागों में हिंदुस्तान और पाकिस्तान के रूप में विभाजित हो गया।
हालांकि गांधी नेहरू और सरदार जैसे राष्ट्रवादी नेताओं को यह कतई गवारा नहीं था कि देश बंट जाए। परंतु कुछ राजनीतिक मजबूरी रही थी जिसके कारण राष्ट्र के बटवारा जैसे जहरीले घूंट को गले में उतारना पड़ा।
बस यहीं से शुरू होती है राष्ट्रवादियों के प्रति द्वेष की भावना का जनता के दिलों में पनपने का सिलसिला। तब से लेकर आज तक दिन-ब-दिन राष्ट्रवादियों के प्रति प्रेम का ग्राफ जनता के दिलों में मिटता गया। इसका सबसे बड़ा उदाहरण गांधी जी की हत्या थी। जैसे ही देश का बंटवारा हुआ वैसे ही उग्र राष्ट्रवादी नाथूराम गोडसे ने गांधीजी की हत्या कर दी। आप इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि बंटवारे को लेकर उग्र राष्ट्रवादियों के मन की स्थिति क्या रही होगी ?
हालांकि तब भी राष्ट्रवादियों ने अपने आप को पुनर्स्थापित करने की बड़ी कोशिश की और लगातार भारतीय राजनीति में पैर जमाए रखा। किंतु लोकतांत्रिक भारत देश में विपक्ष जन्म ले चुका था जो धीरे-धीरे विकसित हो रहा था। ऐसे में आपातकाल के समय जो आंदोलन हुआ उसने देश का दशा और दिशा ही बदल गया। पहले जनता पार्टी फिर टूट कर उसमें से निकली भारतीय जनता पार्टी जोगी उग्र राष्ट्रवाद की समर्थक थी। उदार कहा जाने वाला राष्ट्रवाद धीरे-धीरे नरम पड़ता गया और उग्र कहा जाने वाला राष्ट्रवाद बुलंदियों को छूने लगा।
BJP ने जिस राष्ट्रवाद को लेकर जनता के सामने प्रस्तुत किया उससे जनता ने सहज ही स्वीकार कर लिया। आजाद भारतीय जनतांत्रिक ढांचे को देखें तो उग्र राष्ट्रवाद बड़ा ही मजबूत दस्तक के साथ उभरकर आई है और फिलहाल इस के वर्चस्व का ग्राफ नीचे गिरेगा ऐसा नहीं जान पड़ता। हालांकि राजनीति में नए नए समीकरण बनते रहते हैं आगे क्या होगा कुछ भी कहा नहीं जा सकता।
nice info..