कामयाबी के लिए न बनें भीड़ का हिस्सा kamyabi ke liye na bane bhind ka hissa

कामयाबी के लिए न बनें भीड़ का हिस्सा kamyabi ke liye na bane bhind ka hissa
हर आदमी की यह प्रवृत्ति है कि वह भीड़ का साथ चाहता है। जिधर भी वह भीड़ देखता है उधर ही वह आकर्षित होने लगता है। आदमी वास्तव में भीड़ का कीड़ा है। वैसे भेड़ का भी भीड़ से गहरा संबंध है। भेड़ हमेशा भीड़ ही के साथ-साथ रहता है। भेड़ की अपनी एक प्रकृति होती है। आगे वाला एक भेड़ किधर गया सब के सब उधर ही चल पड़ते हैं। अब चाहे अगला भेड़ यानी कि चौधरी खाई में भी कूद जाए तो कोई फर्क नहीं पड़ता। साथ में सबके सब भेड़ गिर ही जाएंगे। भेड़ों की टोली यानी कि आंखों वाली अंधों की टोली होती है।
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वैसे एक नजरिए से देखा जाए तो भीड़ में एकत्रित होकर बढ़ना एकता का प्रतीक है। परंतु मैं आज एकता वाले भीड़ की बात नहीं कर रहा हूं। मैं तो आज बात कर रहा हूं उस आदमी की जो अपनी सफलता का पड़ाव खोजने के लिए दुनिया की भीड़ में मारा मारा फिर रहा है। मैं तो बात कर रहा हूं उस आदमी की जो कुछ नया तो करना चाहता है परंतु चलता उधर है जिधर सब के सब भीड़ में शामिल हुए भाग रहे हैं।
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आदमी अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध तो है परंतु वह उधर भाग रहा है जिस प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए जिधर दुनिया भाग रही है। इसी नतीजे में हर आदमी एक जैसा बनता जा रहा है। एक के बाद एक सब उसी भीड़ का हिस्सा होते जा रहे हैं। कामयाबी के लिए न बनें भीड़ का हिस्सा किंतु किसी भी परिस्थिति में ऐसा ठीक नहीं है। यदि कुछ नया करना है और यदि आपको कुछ अलग करना है आपको दुनिया में एक बनाना है लाखों में अपनी पहचान बनानी है फिर भीड़ के साथ भागने से तो काम नहीं चलेगा। भीड़ में सम्मिलित होकर तो लाखों में एक नहीं बन पाओगे। हां परंतु उन सभी लाखों जैसा जरुर बन जाओगे जो भीड़ में गुमनाम है।
महान आदमी कुछ भी नया नहीं करता बल्कि हर काम को नए तरीके से करता है।
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यदि आप वास्तव में सबसे अलग सोच रखते हैं तो भीड़ का हिस्सा ना बन कर अपना स्वयं का रास्ता चुनिए और उस रास्ते पर आगे बढ़िए। सिद्ध करके दिखाइए कि आप बिल्कुल सही रास्ते पर हैं। तब जाकर देखिएगा भीड़ के साथ आपको चलना ही नहीं पड़ेगा। आप तो अकेले आगे आगे चलेंगे और भीड़ खुद ब खुद आपके पीछे पीछे चलने लगेगी। भीड़ में और भीड़ से अलग चलने में यही अंतर है।
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यूं भी आप किसी कामयाब मनुष्य को देखिएगा वह अपने रास्ते का निर्माण स्वयं करता है। पर इसका मतलब यह नहीं है कि वह अन्य सफल लोगों का अनदेखा करता है। वह अन्य सफल लोगों को सम्मान देते हुए अग्रसर होता है। पर रास्ता अपना वह स्वयं ही चुनता है। कामयाबी के लिए न बनें भीड़ का हिस्सा वह सदा ही कामयाब लोगों को अपना आदर्श और मार्गदर्शक मानता है। तो कहने का तात्पर्य यह है कि भीड़ में शामिल होना और अन्य सभी लोगों की तरह सोचना कामयाब लोगों की निशानी नहीं है। सारी दुनिया से हटकर नए रास्ते पर चलना सबसे अलग सोच रखना अपने कर्तव्य पर दृढ़ रहना कामयाब लोगों का फितरत होता है।
कामयाबी के लिए न बनें भीड़ का हिस्सा
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मैं जब भी किसी महापुरुष के विषय में अध्ययन करता हूं तो पाता हूं कि किसी ने भी स्वयं को भीड़ का हिस्सा नहीं माना। कामयाबी के लिए न बनें भीड़ का हिस्सा एक भी ऐसा महापुरुष नहीं दिखा जो भीड़ का हिस्सा बनकर जीवन व्यतीत किया हो। परंतु इतना जरूर पाया हूं कि सभी महापुरुषों ने अपना रास्ता चुना है और सबसे अलग चुना है। स्वयं के चुने गए रास्तों पर महापुरुषों ने चलना भी अकेले ही प्रारंभ किया है। बाद में जो पीछे पीछे भीड़ आई उस भीड़ ने महापुरुषों को इतिहास में अमर कर दिया।
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मतलब यह है कि यदि कुछ महान करना है तो उस महान कार्य को करने के लिए भीड़ से अलग होकर एक ऐसा रास्ता चुनना पड़ता है जिस रास्ते पर आपके पीछे-पीछे भीड़ चलने के लिए प्रेरित हो जाए। आपको उनके साथ चलने के लिए प्रेरित नहीं होना है। महान सोच रखने वाला व्यक्ति कभी समूह का हिस्सा नहीं बनता बल्कि समूह का संचालक बनता है। कामयाबी के लिए न बनें भीड़ का हिस्सा संचालक ऐसा होता है जिसके अनुपस्थिति में पूरा समूह भी फीका पड़ जाता है।
कामयाबी के लिए न बनें भीड़ का हिस्सा
यह दुनिया भीड़ है। इस भीड़ से अलग होना आसान नहीं पर थोड़ा सा भीड़ से हटकर अलग पहचान बनाया जा सकता है। जैसे तारों के साथ रह कर भी चांद थोड़ा हटकर रहता है अपनी विशेष पहचान के साथ।